गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का तपस्वी बनना
|
तुलसीदास जी का तपस्वी और जीवन की मोह माया को त्याग देने के संबंध में एक प्रसंग बहुत प्रचलित है। तुलसीदास जी का विवाह बुद्धिमती नाम की लड़की से 1526 ईस्वी (विक्रम संवत 1583) में हो गया था। बुद्धिमती को लोग रत्नावली के नाम से अधिक जानते थे। विवाह के पश्चात तुलसीदास जी अपनी पत्नी के साथ राजापुर नामक स्थान में रहा करते थे। तुलसीदास और रत्नावली दम्पति का एक पुत्र था जिसका नाम तारक था। लेकिन किसी कारण वश बहुत ही कम उम्र में तारक की मृत्यु शयन अवस्था में हो गई थी।
|
|
पुत्र की मृत्यु के बाद तुलसीदास जी का अपनी पत्नी से लगाव कुछ अधिक ही बढ़ गया था। तुलसीदास जी किसी भी हालत में अपनी पत्नी से अलगाव सहन नहीं कर सकते थे। दुःख से पीड़ित तुलसीदास जी की पत्नी एक दिन बिना बताये अपने मायके चली गई। जब तुलसीदास जी को इसके बारे में पता चला तो वह रात को चुपके से अपनी पत्नी से मिलने ससुराल पहुंच गए। यह सब देख रत्नावली बहुत ही ज्यादा शर्म की भावना महसूस हुई। और रत्नावली ने तुलसीदास जी से कहा “ये मेरा शरीर जो मांस और हड्डियों से बना है।
|
|
जितना मोह आप मेरे साथ रख रहे हैं अगर उतना ध्यान भगवान राम पर देंगे तो आप संसार की मोह माया को छोड़ अमरता और शाश्वत आनंद प्राप्त करेंगे। अपनी पत्नी की यह बात तुलसीदास जी को एक हृदयघात करती हुई एक तीर की तरह चुभी और उन्होंने घर को त्यागने का मन बना लिया। जिसके बाद तुलसीदास जी घर छोड़कर तपस्वी बन गए। तपस्वी बनकर तीर्थ स्थानों का भ्रमण करने लगे।
|
|
चौदह साल तक विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर अंत में तुलसीदास जी वाराणसी पहुंचे। वाराणसी पहुंचकर तुलसीदास आश्रम बनाकर रहने लगे और लोगों को धर्म, कर्म, शास्त्र, आदि की शिक्षा देने लगे।
|
|
Goswami Tulsidas Ji Maharaj becoming an ascetic
|
There is a very popular incident about Tulsidas ji's asceticism and renouncing the attachments of life. Tulsidas ji was married to a girl named Buddhimati in 1526 AD (Vikram Samvat 1583). People knew Buddhimati better by the name of Ratnavali. After marriage, Tulsidas ji used to live in a place called Rajapur with his wife. Tulsidas and Ratnavali couple had a son named Tarak. But due to some reason Tarak died in his sleep at a very young age.
|
|
After the death of his son, Tulsidas ji's attachment to his wife had increased a lot. Tulsidas ji could not bear separation from his wife under any circumstances. One day, Tulsidas ji's wife, suffering from grief, went to her parents' home without informing him. When Tulsidas ji came to know about this, he secretly reached his in-laws house at night to meet his wife. Seeing all this, Ratnavali felt very ashamed. And Ratnavali said to Tulsidas ji, “This is my body which is made of flesh and bones.
|
|
If you pay as much attention to Lord Ram as you are having with me, then you will leave the worldly attachments and attain immortality and eternal happiness. These words of his wife hit Tulsidas ji like an arrow giving him a heart attack and he decided to leave the house. After which Tulsidas ji left home and became an ascetic. He became an ascetic and started visiting pilgrimage places.
|
|
After touring various places for fourteen years, Tulsidas ji finally reached Varanasi. After reaching Varanasi, Tulsidas started living in an ashram and started teaching people about religion, karma, scriptures, etc.
|
|