जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
अगस्त्य मुनि ने विंध्याचल पर्वत को झुकाया (Agastya Muni Ne Vindhyachal Parvat Ko Jhukaya Kahani)

Agastya Muni bowed down Vindhyachal mountain | Hindi Stories

दक्षिण की ओर जाते समय अगस्त्य की भेंट विंध्याचल से हुई। भारत के मध्य भाग में विंध्याचल नाम की पर्वत श्रेणी है जो हिमालय से भी बहुत पुरानी है। पर्वतों में हिमालय को पर्वतों का राजा चुना गया था। तो जब अगस्त्य दक्षिण की ओर जा रहे थे तब विंध्याचल बहुत ग़ुस्से में थे और उन्होंने अगस्त्य को रोक कर पूछा, "आप हिमालय को राजा कैसे बना सकते हैं, मेरी तुलना में वो बस बच्चा है!

अगस्त्य जानते थे कि जब कोई गुस्से में होता है, तो वो बहुत खराब काम कर सकता है। अब अगर कोई पर्वत ही नाराज हो तो वो क्या कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। अगस्त्य वहाँ बैठ गये, तो विंध्याचल ने बहुत भक्ति भाव से झुक कर उनको प्रणाम किया। तब अगस्त्य बोले, "आप बस यहीं रहिये। मैं अभी दक्षिण की ओर जा रहा हूँ।

जब लौटूँगा तब आपके सवाल पर हम चर्चा करेंगे"। तो विंध्याचल अगस्त्य मुनि के वापस आने की राह देखते हुए, वहीं, उसी झुकी हुई मुद्रा में, वैसे ही रह गये। पर, अगस्त्य कभी वापस आये ही नहीं। जब उन्हें वापस, उत्तर की ओर जाना था तो वे दूसरे रास्ते से, जगन्नाथ पुरी होते हुए गये जिससे विंध्याचल की तरफ से जाना टाला जा सके और विंध्याचल ऐसा ही झुका हुआ रहे। विंध्याचल छोटा है, क्योंकि वो झुक गया था। हिमालय ज्यादा ऊँचा है, क्योंकि वो खड़ा है और अभी भी बढ़ रहा है।