जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी की भक्ति (Bhagavaan Shree Krshn Aur Rukminee Kee Bhakti)

भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के मन में एक दिन एक विचित्र विचार आया। उन्होंने तय किया कि वह भगवान श्रीकृष्ण को अपने गहनों से तौलेंगी। श्रीकृष्ण ने जब यह बात सुनी तो बस मुस्कुराए, बोले कुछ नहीं।

सत्यभामा ने भगवान को तराजू के पलडे़ पर बिठा दिया। दूसरे पलड़े पर वह अपने गहने रखने लगीं।भला सत्यभामा के पास गहनों की क्या कमी थी। लेकिन श्रीकृष्ण का पलड़ा लगातार भारी ही रहा। अपने सारे गहने रखने के बाद भी भगवान का पलड़ा नहीं उठा तो वह हारकर बैठ गईं।

तभी रुक्मिणी आ गईं। सत्यभामा ने उन्हें सारी बात बताई। रुक्मिणी तुरंत पूजा का सामान उठा लाईं। उन्होंने भगवान की पूजा की। जिस पात्र में भगवान का चरणोदक था, उसे उठाकर उन्होंने गहनों वाले पलड़ों पर रख दिया। देखते ही देखते भगवान का पलड़ा हल्का पड़ गया। ढेर सारे गहनों से जो बात नहीं बनी, वह चरणोदक के छोटे-से पात्र से बन गई। सत्यभामा यह सब आश्चर्य से देखती रहीं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हुआ।

तभी वहां नारद मुनि आ पहुंचे। उन्होंने समझाया, ‘भगवान की पूजा में महत्व सोने- चांदी के गहनों का नहीं, भावना का होता है। रुक्मिणी की भक्ति और प्रेम की भावना भगवान के चरणोदक में समा गई। भक्ति और प्रेम से भारी दुनिया में कोई वस्तु नहीं है। भगवान की पूजा भक्ति-भाव से की जाती है, सोने-चांदी से नहीं। पूजा करने का ठीक ढंग भगवान से मिला देता है।