जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
गुरू को प्रति अविश्वास (Guru Ke Prati Avisvas Kahani)

महात्मा निजामुद्दीन औलिया करके मशहूर एक महात्मा दिल्ली शहर में रहा करते थे । निजामुद्दीन साहब के दरबार में स्त्री पुरुषों की बहुत भीड़ हुआ करती थी क्योंकि लोग संसारी मुरादों को लेकर उनके दरबार में हाजिर हुआ करते थे।

निजामुद्दीन मस्त औलियाओं में मशहूर थे । जब निजामुद्दीन खुदा की मस्ती में आते थे तो दुनियां को दुखी देखकर संसारी स्त्री पुरुष की मुरादें उनकी चाह के अनुसार पूरा कर दिया करते ते । दरवार निजामुद्दीन का शाही लगता था । लाखों आदमी उनके शिष्य थे।

एक बार एक शिष्य ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की की हजूर आपके दरबार में लाखों की भीड़ है क्या इन सबको निजात मिलेगी।

उस आदमी ने पूछा कि फिर कौन नजात पाने का अधिकारी है ?

निजामुद्दीन साहब बोले कि लाखों में एक शिष्य है जिसको नजात मिलेगी | बाकी अपनी ख्वाहिशों के मुताबिक योनियों में चले जावेंगे | कुछ दिन बात निजामुद्दीन साहब बोले कि मुझे आज घूमने की इच्छा होती है । हमारे साथ कुछ लोग चलें। निजामुद्दीन के साथ पांच हजार के करीब उनके मुरीद साथ हो गये । उनमें एक सप्रू साहब भी थे । दिल्ली शहर में घूमते हुये वे उस गली से गुजरे जहाँ पर वेश्याओं का निवास था। निजामुद्दीन औलिया बोले कि आप सब लोग यही पर रुक जावें । आप लोगों को न तो पीछे जाने की जरूरत है और न आपको आगे आने की जरूरत है । हिदायत के अनुसार यहीं पर ठहरे रहें।

निजामुद्दीन साहब सबको खड़ा करके एक वेश्या के कोठे पर चढ़ गये । ऊपर पहुँचकर निजामुद्दीन ने वेश्या के नौकर से कहा कि तुम नीचे जाओ और एक बोतल शराब ले आओ | जब वेश्या का नौकर नीचे आया तो जो लोग खडे थे उन्होंने नौकर से पूछा कि तुम कौन हो? नौकर ने कहा कि मैं वेश्या का नोकर हूं । एक महात्मा आये हैं | उन्होंने एक बोतल शराब मगाया है । यह सुनकर निजामुद्दीन साहब के मुरीद आपस में बातचीत करने लगे कि भाई मैं तो पहिले ही से तुझसे कहता था कि इस महात्मा के पास कुछ नहीं है | यहां अकारण हम लोग भ्रम में पड़े हुए हैं । ये महात्मा खाते पीते और संसार का आनन्द लेते हैं और हमें संसारी आनन्द लेने से मना करते हैं | वे आपस में कहने लगे कि अरे भाई चलो । आधे से अधिक लोग गुरु की हिदायत का उल्लंघन करके चले गये।

अब और कुछ लोग सोचने लगे कि गुरु साहब ने कहा था कि न आगे आना और न पीछे जाना | उनकी आज्ञा में चलना हमारा फर्ज है । इसी विचार में लोग खड़े रहे | जब निजामुद्दीन साहब सुबह तक ऊपर से न उतरे तो लोग विचारने लगे कि अधिक लोग चले गये | हम क्या करें ? उसमें से कूछ लोग कहने लगे कि जो लोग गये हैं वे कहते थे कि निजामुद्दीन के पास कुछ नहीं | हम लोगों ने गुरु साहब को देखा नहीं है कि वह कैसे हैं ? अपनी आंखों से देखना था यह कहकर वे गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए आगे बढ़े और जिस कोठे पर गुरु साहब गये थे उसी पर चढ़े गये । तब लोग देखते हैं कि गुरु महाराज वेश्या से एक तख्त पर बैठकर बात कर रहे हैं । इस दृश्य को देखकर लोग निजामुद्दीन साहब को समझ के अभाव में आकर कोठे से नीचे उतरे और कहने लगे कि वह लोग ठीक कहते थे कि निजामुद्दीन साहब के पास कछ नहीं है | झूठ में लोग इनकी तारीफ करते हैं और वह भी गुरु साहब को कोसते हुए और बुरा भला शब्द महात्माओं के
प्रति निकालते हुए चले गये |

निजामुद्दीन साहब के एक ही शिष्य थे जो कि गुरु की हिदायत अनुसार उसी जगह पर खड़े रहे | यही एक शिष्य थे जिनका नाम सप्रू साहब था इन्होंने गुरु की ओर देखा ही नहीं इन्हें तो उनकी आज्ञा का पालन करना था | निजामुद्दीन सूरज निकलने के बाद कोठे पर से उत्तरे तो देखे कि सब आदमी जा चुके थे । एक सप्रू साहब ही खडेो थे | निजामुद्दीन साहब सप्रू साहब से बोले कि तू क्यों खड़ा है ? हम लोग मौज करने वाले हैं तुम भी मौज करो जाकर हमारे पास कुछ नहीं है ।

सप्रू साहब की आंखों में आंसू आ गये वे गुरू साहब से बोले कि मुझे तो आपकी हिदायत कबूल है । आप क्या करते हैं क्या नहीं करते हैं यह तो आप खुद जानें बन्दा तो हुकम का पाबन्द है और रहेगा। गुरु साहब ने सप्रू को अपने हृदय से लगाकर कहा कि तू ही एक मेरा पुत्र है जो पावेगा और दोजख की मुरादों के मुताबिक सब चले जावेंगे।

यह सब हिदायत निजामुद्दीन साहब की हैं कि आज्ञा का पालन करने वाले ही हमारे पुत्र हैं । बाकी सब कपूत है।