जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
हिम्मत और हौसला (Himmat Aur Honsla Kahani)

जो कार्य हिम्मत और हौसले के साथ होता है तो अगर वह काटा भी है तो गुलदस्ता बन जाता है परिपक्व ख्यालों वाले की कुदरत भी सहायक है । जिस मनुष्य की हिम्मत और हौसला ऊंचा होता है उसका इतबार धरती और आकाश के अन्दर उसके हौसला और हिम्मत के अनुसार होता है और यह बात निःसन्देह और सच्ची है |

कथा है किसी समुन्द्र के किनारे दो चिड़ियां नर और मादा घोंसला बनाकर रहा करती थीं | एक बार ज्योंही ज्वार भाटा आया तो चिड़ियों का घोसला और अण्डे बहाकर समुद्र में ले गया | यह दोनों बाहर से जब उड़ती आई देखा तो न वहां घर है न अण्डे हैं | पता लगा कि समुद्र ने उछाल कर बहां दिये | चिड़ियां सुनते ही आग बबूला हो गईं और क्रोध में आकर कहने लर्गी अगर हमारा नाम चिड़ियाँ है तो हम इस समुन्द्र को खुश्क करके छोड़ेगी | समुन्द्र है कौन जो हमारे अण्डे बहा ले जाय । इसे अहंकार होगा कि मैं बहुत बड़ा हूं । लेकिन अभी तक इसे कोई शिक्षा देने वाला नहीं मिला। इसे अधिकार क्या है कि बिना कारण किसी दूसरे के घर पर हमला करे । प्रण कर लिया कि जब तक इसको खुश्क॑ न कर देंगी सुख का स्वांस लेना भी हमारे लिए पाप हैं | यहँ कहकर वे दोनों पक्षी लगे समुन्द्र को सुखाने । उनका क्या कार्य था कि किनारे से रेत को चोंच भर कर समुन्द्र में फेंकना और समुन्द्र से पानी की चोंच भर कर बाहर फेंकना | . '

परन्तु समुन्द्र तो समुन्द्र है । उसका खुश्क करना तीनों / काल में असम्भव और फिर एक छोटे-छोटे पक्षियों के हाथ से | लेकिन वह चूंकि अपने दिल में आला दर्जा की हिम्मत रखते थे इसलिये उन्होंने आखिर समुन्द्र को खुश्क करके दिखा दिया और संसार में हिम्मत और हौसला की एक अति उत्तम और ऊंची नजीर कायम कर दी |

कहते हैं कि जब दोनों चिड़ियां समुन्द्र के सुखाने के काम में लग गईं तो दूसरी चिड़ियों ने आकर इसका कारण पूछा | उन्होंने उत्तर दिया समुन्द्र हमारे अण्डे बहा ले गया है हम इसे खुश्क करती हैं । उन्होंने कहा यह काम तुम्हारे से क्या हम सारे से नहीं हो सकता है इस ख्याल को छोड़ो और मुफ्त में अपना जीवन नष्ट न करो । उन्होंने उत्तर दिया हम इस प्रकार उपदेश सुनने को तैयार नहीं है। यदि तुमसे हो सकता है तो हमारे साथ लग जाओ नहीं तो पीठ दिखाओ । हमको ऐसे कायर और कमजोर ख्याल वाले के साथ वाद-विवाद करके अपना समय नष्ट करना मंजूर नहीं ।

उनकी इस प्रकार की ऊंची हिम्मत और दिलेरी का कुछ ऐसा प्रभाव उनके मन पर पड़ा कि वे अपने ज्ञान उपदेश करने को भूल गये । और उनके साथ मिलकर वे भी चॉंच में रेत भर-भर कर समुद्र में डालने लग पड़ी | एक और एक ग्यारह होते हैं । परन्तु यह तो तीन हो गई | अब तो वन की अनेक चिड़ियां उनके साथ मिलकर समुन्द्र को सुखाने लग गईं | जब अच्छा खासा झुण्ड चिड़ियों का इस काम में लग गया तो इस सोहरत को सुनकर देश-देश की चिडियों का झुण्ड वहीं पहुँचने लगा । अब बात पूछने से आगे निकल गई । जो भी चिड़ियाँ आती, दूसरों को इस तरह करते देखकर वे भी उसी तरह करने लग जार्ती | जब संसार की तमाम चिड़ियां आ पहुंची तो दूसरे पक्षियों का भी इधर ध्यान हुआ । उन्होंने देखा दुनियाँ की सब चिड़ियां समुन्द्र को खुश्क करने में लग रही हैं तो वे भी वहाँ पहुँचने लगे और उनके साथ मदद करने लगे |

सारांश यह कि कुल संसार के पक्षी उस जगह आकर एकत्रित हुये और समुन्द्र को सुखाने के काम में लग पड़े । यह बात चारों और फैल गई जो सुनता आकर्षित होता | फिरते फिरते वहां नारद ऋषि आ गये | उन्होंने देखा तमाम पक्षी समुन्द्र का पानी उछाल रहे हैं । और उसके बदले
उसमें रेत भर रहे हैं । उन्होंने इसका कारण पूछा । पता लगा कि समुन्द्र इनके अण्डे बहा ले गया है और ये उसको सुखाना चाहती हैं । नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ | बहुत समझाया । मगर वहां उनकी सुनता कौन था साथ में सब पक्षी सिर धड़ की बाजी लंगाकर पानी उछाल रहे थे |

नारद जी को दया आई । शीघ्र ही बैकुण्ठ में विष्णु भगवान के पास पहुँचे और सब हाल ज्यों का त्यों कह सुनाया। भगवान ने तुरन्त गरुड़ जी से कहा - तुम्हारी प्रजा संसार में इस कदर दुखी हो रही है जिसकी कोई हद नहीं और तुम यहां सुख की नींद सो रहे हो । शीघ्र जाओ और अपनी प्रजा को दुख से छुटकारा दिलाओ । भगवान की आज्ञा पाते ही गरुड़ जी वहां आये और पक्षियों को ऐसी अवस्था में देखकर समुन्द्र पर इतना भारी क्षोभ किया कि समुन्द्र भयभीत हो करके त्राहि-त्राहि करता हुआ गरुड़ जी के चरणों में आ उपस्थित हुआ और क्षमा मांगने लगा । गरुड़ जी ने कहा जल्दी इन पक्षियों के अण्डे वापिस दे दो नहीं तो अभी तुम्हें दण्ड देता हूँ । नीच ! तुझे इतना ख्याल नहीं है कि तमाम पक्षी इस तरह से अपना जीवन खत्म कर देंगे और तू फिर भी इतना मस्त बैठा है । समुन्द्र ने गरुड़ जी के चरणों में नमस्कर किया और उसी समय एक उछाल के द्वारा वे अण्डे निकालकर किनारे पर रख दिये । वे चिड़ियां अपने अण्डे पाकर खुश हुई और गरुड़ जी सब पक्षियों को आशीर्वाद
देते हुए वापिस बैकुण्ठ धाम को चले गये |

यह नजीर है सोहिदे किसी काम पर हिम्मत बांधकर लग जाते है तो वह न होने वा ली बात को भी करके दिखा देते हैं । कहते है जब फरदाह तेशा लेकर पहाड़ को चीरने लगा जब एक तेशा मरता था तो करोड़ तेशे उसके साथ कुदरत मारती थी । इस तरह से वह जवान पहाड़ को चीरने में सफल हो गया | कुदरत की तरफ से भी मदद उन्हीं के लिये उततरती है जो इरादे के मजबूत होते है | क्योंकि कामयावी और नाकामी सब आदमी के अपने इरादे और दिलेरी पर निर्भर है । हौसलामन्द आदमी के जोश को उभारने में धरती और आकाश की तमाम शक्ल मदद लेने के लिए तैयार खड़ी रहती हैं । उभरने वाली सख्सियत को दुनियां की कोई भी ताकत दबा नहीं सकती और निकम्मे तथा आलसी आदमी की संसार की कोई ताकत उभार नहीं सकती । जिस नाकामी की आदमी शिकायत करता है वास्तव में कोई चीज नहीं है । उसे चाहिये कि वह अपने काम में लग जाए और काम का ध्यान करे फिर वह आदमी देख लेगा कि सफलता उसके पांव चूमने के लिए तेयार खड़ी है या नहीं जो मनुष्य हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहता है उसमें ताकत नहीं आती वह दिनों दिन दुर्बल और डरपोक बनता जाता है और यह बेकारी उसको यहां तक नीचे गिरा देती है कि काल और कर्म उसको फिर धर दबाते हैं और जो मनुष्य जिस कदर ज्यादा काम करने का आदी होता है उतनी ही उसमें ताकत भी ज्यादा आती जाती है । संसार में मनुष्य का जीवन कोई मामूली चीज नहीं है । अगर वह हस्ती रखता है तो फिर क्या कारण है उसकी हस्ती का असर खाली चला जाय | सिर्फ जरा इसे ,हिम्मत र दिलेरी से काम लेना चाहिये।

कहने का भाव यह है कि जो मनुष्य अपना काम अपने आप करना चाहता है और करने लगता है ईश्वर उसका साथ देता है और जो अपना काम आप नहीं करता कुदरत में उसकी सहायता का कोई सामान नहीं है । ईश्वर की तरफ से सहायता केवल ऐसे ही लोगों को मिला करती है जो अपना काम आप करते हैं । उन भक्तों के पास कौन सी शक्ति होती है जो भगवान को वही खड़े-खड़े प्रकट कर लेते हैं | यह सिर्फ ख्याल की परिपक्कता और इरादे की मजबूती का असर होता है कि भगवान झट सामने आ मौजूद होते हैं। लोग भगवान-भगवान करते है। बड़ी-बड़ी ऊँची आवाजों से पुकारते हैं - भगवान तू आ, भगवान तू आ, युग-युग प्रकट होने के वायदे याद दिलाते हैं । परन्तु हिम्मत इतना नहीं होती कि संसार की थोड़ी सी दुश्मनी का मुकाबला कर सकें । निंदा का मुँह देखते ही घबड़ा कर रोने लगते हैं और भक्ति को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं । ऐसे लोगों से भगवान भी करोड़ों स दूरी पर रहते हैं - क्योकि वो जानते हैं कि किस दर्ज का भक्त हैं | इश्वर कोई अनजान नहीं है जिसे कोई भी जबानी जमा खर्च से रिझा लेवें उसे रास्ते मे भी कुरबानी की जरूरत है । जो लोग भगवान के भक्त भी बनना चाहते हैं और साथ ही संसार की लोक लाज और निन्दा स्तुति से भी घबड़ाते हैं उनकी किस्मत उस स्त्री की सी है जो नाचना भी चाहती है और घूँघट लम्बा निकालती है ।

देहाती लोग कहा करते हैं कि नाचने लगी फिर घूंघट कैसा | यह जब नदी में कूद पड़े तो बरसात की बूंदा-बांदी का भय कैसा ? इसी तरहें जब मनुष्य भक्ति मार्ग पर चला है तो फिर उसे लोक लाज का भय त्याग देना चाहिये |