जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
जब एक शिष्या से हुआ गुरु को सत्य का ज्ञान (Jab Ek Shishya Se Hua Guru Ko Saty Ka Gyaan)

जब एक शिष्या से हुआ गुरु को सत्य का ज्ञान | When the Guru came to know the truth from a disciple

एक संत को अपना भव्य आश्रम बनाने के लिए धन की जरूरत पड़ी। वह अपने शिष्य को साथ लेकर धन जुटाने के लिए लोगों के पास गए। घूमते-घूमते वह एक गाँव में अपनी शिष्या एक बुढ़िया की कुटिया में पहुंचे।

कुटिया बहुत साधारण थी। वहां किसी तरह की सुविधा नहीं थी फिर भी रात हो गई तो संत वहीं ठहर गए। बूढी माँ ने उनके लिए खाना बनाया।

खाने के बाद संत के सोने के लिए मां ने एक तख्त पर दरी बिछा दी और तकिया दे दिया। खुद वह जमीन पर एक टाट बिछाकर सो गईं। थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद सो गईं लेकिन संत को नींद नहीं आ रही थी। वह दरी पर सोने के आदी नहीं थे। अपने आश्रम में सदा मोटे गद्दे पर सोते थे।

संत सोचने लगे कि जमीन पर टाट बिछा कर सोने के बावजूद इस को गहरी नींद आ गई और मुझे तख्त पर दरी के बिछोने पर भी नींद क्यों नहीं आई। मैं तो संत हूँ, सैंकड़ों का मार्गदर्शन करता हूँ और यह एक साधारण दरिद्र बुढ़िया। यह बात उन्हें देर तक मथती रही। सोचने लगे, एक दिन यहीं रुकता हूँ, देखता हूँ कि यह ऐसा कौनसा मंत्र जानती है कि ऐसी अवस्था में भी प्रसन्न है, चैन से सोती है।

सुबह जल्दी उठकर बूढी माँ ने अपने हाथ से कुटिया की सफाई की और चिडिय़ों को दाना खिलाया। गाय को चारा दिया। फिर सूर्य को जल अर्पण किया, पौधों को सींचा। गुरु को प्रणाम किया और कुछ देर बैठ कर भगवान नाम का स्मरण। आँगन से तरक़ारी तोड़ कर भोजन पकाया। गुरु को प्रथम भोजन करवा कर आप ग्रहण किया। दिन में आस पड़ोस की बच्चियों को बुला कर उन्हें हरि कथा सुनाई, हरि भजन का ज्ञान दिया। फिर संध्या पूजन, रात को पुन: सादे भोजन का प्रबंध। सोने की तैयारी। गुरु सोचने लगे आज फिर नींद नहीं आयेगी। पूछ ही लूं कि क्या रहस्य है।

संत ने पूछा, ‘‘मां, तुमने मेरे लिए अच्छा बिछोना बिछाया। फिर भी मुझे नींद नहीं आई जबकि तुम्हें जमीन पर गहरी नींद आ गई। क्या तुम्हें धरती की कठोरता नहीं सताती? क्या यह चिंता नहीं होती कि कैसे अपने लिये अच्छे भोजन का, नरम बिछड़ने का प्रबंध करूँ? इसका कारण क्या है?’’

वह बोलीं, ‘‘गुरुदेव जब मैं सोती हूं तो मुझे पता नहीं होता कि मेरी पीठ के नीचे गद्दा है या टाट। उस समय मुझे आपके वचन अनुसार दिन भर किए गए सत्कर्मों का स्मरण करके ऐसा अद्भुत आनंद मिलता है कि मैं सुख-दुख सब भूल कर परम पिता की गोद में सो जाती हूं इसलिए मुझे गहरी नींद आती है।’’

संत ने कहा, ‘‘मैं अपने सुख के लिए धन एकत्रित करने निकला था। यहां आकर मुझे मालूम हुआ कि सच्चा सुख भव्य आश्रम में नहीं बल्कि संतोष में है, दरिद्र की इस कुटिया में है।’’

फिर उन्होंने अपना सारा एकत्रित धन गरीबों में बांट दिया और स्वयम् सामान्य-सी कुटिया में रहने लगे। एक साधारण शिष्या के माध्यम से गुरु ने ज्ञान पा लिया।