जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
माता का आशीर्वाद (Mata Ka Aashirwad Kahani)

जब मेरी आयु चार साल की थी तो मेरी माता जी का स्वास्थ्य ठीक न था । मुझे याद है कि माता जी ने बुलाया, मैं जब इनके पास पहुँचा तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया और कहा कि बेटा तुम अपना अमूल्य जीवन परमात्मा की खोज में बिताना भगवान तुम्हें सफलता देंगे । इसके बाद उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया |

यदि इसी प्रकार माताएँ आशीर्वाद दें तो भली बात है । वे नहीं जानती कि सन्तान क्यों पैदा की जाती है । सन्तान एक ही उद्देश्य से पैदा की जाती है कि वह शक्तिशाली और महान ज्ञानी बनकर परमात्मा को युवावस्था में ही प्राप्त कर ले और फिर समस्त संसार के जीवों एवं प्राणीमात्र के आत्म कलयाण में समर्थ होकर उनका और अपने माता पिता परिवार व समाज तथा देश का उद्धार करे । उनको सुखी बनावे । माता-पिता को परमात्मा से जोड़कर उनके ऋणों से मुक्त हो जावे । मगर अफसोस है कि इन्सान ने इन्सानियत का मतलब ही नहीं समझा । आज की संतानें अपना ही भला नहीं कर सकते तो माता पिता के भले की बात सोचना ही बेकार है । तब दूसरों की भलाई का सवाल ही पैदा नहीं होता । वे इतना भी नहीं जान पाते कि माता-पिता क्या होते हैं । गुरु क्या होता है । मित्र किसे कहते हैं | बैरी क्या होता हैं | तब हित की वात समझ में कैसे आ सकती है |

आज की शिक्षा और रहन-सहन, आचार-विचार तथा संगति काफी हद तक बिगड़ चुकी है । मनुष्यों ने इंसानियत को तज दिया है । अब न उनके पास प्रेम है न दया है उनके सामने एक ही लक्ष्य है - खाना पीना और मौज उड़ाना तक, कल्याण की तरफ कौन ध्यान दें।

जीवों को आत्म बोध का सन्देश देते हुए स्वामीजी ने कहा कि मैं माता के आशीर्वाद से लड़कपन से ही उधर ध्यान देने लगा | मैं भी गुरू जी के पास पहुंच कर वही चाहता था कि उनकी मुझ पर दया हो जाय तो ईश्वर की प्राप्ति हो जावे । उनके पास मुझे देर अवश्य लगी | १८-१८ घण्टे साधन में देता था । इसी प्रकार प्रतिदिन लगातार साधना करता रहा । गुरु ने प्रसन्न होकर ३१वें दिन मुझ पर कृपा कर दी तब कुछ मिला । गुरु आज्ञा का पालन धर्म मानकर करता था | तब वहां हताश होने का सवाल ही पैदा नहीं होता |