आओ रे लोगों सन्त शरण में, काम यही एक आएगा।
ये नर तन अनमोल मिला है, बार बार नहीं पाएगा।।
मात गर्भ में उल्टा लटका, नो महीने दुख पाया था।
सुमरूँगा मैं नाम तुम्हारा, ये कह बाहर आया था।।
आते ही तू भूल गया, वहां क्या कह कर के आया था।
यम की अदालत में तू पगले, कौन सा मुँह दिखलायेगा-
ये नर तन अनमोल मिला बार बार नहीं पाएगा।।
ऊँचे ऊँचे महल बनाये, तूने सुख से रहने को।
जोड़ जोड़ भर लिया खजाना, अपना अपना कहने को।।
ना जाने कब यम परवाना, आ जायेगा लेने को।
न जाएगी माया संग में, सब कुछ यही रह जायेगा-
ये नर तन अनमोल मिला, बार बार नहीं पाएगा।।
सोच समझ ले रे मन मूरख, जो हरि दर्शन पाना है।
नाम सनातन गुरु से ले ले, आवागमन मिटाना है।।
कहत कबीरा कल क्या होगा, ये न किसी ने जाना है।
जब उड़ जाए जीवन पंछी कौन तुझे समझाएगा
ये नर तन अनमोल मिला, बार बार नहीं पाएगा।।
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