आरती जयगुरुदेव अनामी, कीन्ही कृपा दरश दियो स्वामी।।
चित वत पंथ रहूं दिन राति, तुमहि देख शीतल भई छाती।
हे प्रभु समरथ अन्तर यामी--आरती जयगुरुदेव अनामी।।
मैं मूरख क्रोधी खल कामी, लोभी निपट मोह पथ गामी।
तेरी सेवा भक्ति न जानी--आरती जयगुरुदेव अनामी।।
दया धर्म चित्त नही समाये, शील क्षमा सन्तोष न आये।
अस में हीन अधीन निकामी--आरती जयगुरुदेव अनामी।।
दासों की विनती सुन लीजै, शरण आश्रय हमको दीजै।
तब पद कंज नमामि नमामि।
आरती जयगुरुदेव अनामी, कीन्ही कृपा दरश दियो स्वामी।।
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