बता दो प्रभु तुमको पाउं मैं कैसे? विमुख होके सन्मुख, अब आउं मैं कैसे?
विषय वासनायें निकलती नहीं हैं, ये चंचल चपल मन मनाउं मैं कैसे?
कभी सोचती तुमको रोकर पुकारूं, पर ऐसा हृदय को बनाउं मैं कैसे?
प्रबल है अहंकार साधन न संयम, ये अज्ञान अपना मिटाउं मैं कैसें?
कठिन मोह माया में अतिशय भ्रमित हूं, गुरु बिना दया पार पाउ मैं कैसे?
हृदय दिव्य आलोक से जो विमल हो, विनय किस तरह की सुनाउ मैं कैसे?
दयामय तुम्हीं मुझ पतित को सम्हारो, मैं कितनी पतित हूं दिखाउं मैं कैसे?
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