बज रहा काल का डंका, कोई बचने न पायेगा।
बचेगा साधुजन कोई जो संत से लव लगायेगा।
बचेंगे सत्य का डंका है जिसने हाथ गह पकड़ा।
काल विश्वास धाती और झूठों को चबायेगा।
बचेंगे वे जो पर उपकार में, तन धन लगायेंगे।
बचेगा अब न अन्यायी, जो जीवों को सतायेगा।
आज वह एक भी उस काल के मुख से न बच सकता।
दीन जीवों की खलड़ी नोच कर खाया जो खायेगा।
मांस खोरों व मदिरा पान करने वालों, सुन लेना।
तुम्हारा मांस अब कोई गीध कौवे, न खायेगा।
बचेंगे वे भरोसा जिनको, मेहनत की कमाई का।
बचेगा वह नहीं हक गैर का जो छीन खायेगा।
बचेगा साधु जिसने इन्द्रियों को साध रखा है।
बहिर मुख इन्द्रियों का दास अपना सब लुटायेगा।
बचेगा वह शरण पूरे गुरु की, जिसने धारण की।
दया सागर मेरे गुरुदेव, अब मुझको बचा लेना।
बचाने वाला पाकर क्यों भटकने कोई जायेगा।
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