देखो गुरु दरबार मची होली । सखि देखो ।
उड़े अबीर गुलाल चहूँ दिशि, ले लाल फुहार पवन डोली ।
लाल अकाश लाल रवि मंडल, कण-कण भूमि लाल धूली ।
भये गिरि लाल, लाल कानन, तरू लाल लता तिन पर फूली ।
बजत मृदंग मेघ जनु गर्जहिं, होत मल्हार कहीं होली ।
हंस हंसिनी नाचे गावें, रंग भूमि में राम धनुष तोड़ी ।
सीता सुरत सुमन की माला, ले श्रीराम गले मेली ।
सोई बड़ भागी जो यह होली, जयगुरुदेव कृपा खेली ।
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