जब नींव धर्म की हिलती है, कोई हस्ती खुदा से उतरती है ।
भूले भटके इंसानों पर, रहमत की नजर वो करती है ।
रूहें जो गुनाहां से रहती दबी, वो पास में आती डरती हैं ।
उनसे भी मोहब्बत ये करती, सब माफ गुनाहें करती हैं ।
कोई गैर नहीं सब अपने हैं,यह ख्याल सभी में भरती है ।
इंसान व सब मखलूके जहाँ, हिल मिलकर जहां में रहती है ।
रूहानी तरक्की करती हुई, दीदार अनलहक करती हैं ।
ऐसी रूहानी हस्ती यहाँ, जब आ के जहां में चमकती हैं ।
रहमान उन्हें सब कहते हैं,रूहों पे रहम वो करती हैं ।
रहमत व मोहब्बत की दुनिया, एक बार दोबारा बनती है ।
हर तरफ सकून है फैल जाता, बन जाती स्वर्ग यह धरती है ।
दुनिया का नजारा आज जो है, इसे देख निगाहें झुकती हैं ।
आज मर्द तो क्या है जनाना भी, शर्म हया का पर्दा उठाए चलती है ।
कोई धर्म नहीं अब इनका रहा, दिन रात गुनाहें करती हैं ।
मखलूकों की गर्दन कटतीं है, खातूनों की अस्मत लुटती है ।
अल्लाह के ईमान वालों पर, अब दुनियां ताने कसती है ।
आमिर, आलिम व बुजुर्गों की, कोई बात न दुनिया सुनती है ।
हर तरफ गुनाहों के बोझों से, तब आज दबी ये धरती है ।
तब जयगुरुदेव अनलहक से, नूरानी हस्ती उतरती है ।
जब नींव धर्म की हिलती है, कोई हस्ती खुदा से उतरती है ।
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