मन लागो मेरो यार फकीरी में।
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में।
प्रेम नगर में रहनि हमारी,भलि बनि आयी सबूरी में।
हाथ में कुन्डी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में।
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में।
कहे कबीर सुना भई साधो, साहब मिले सबूरी में।
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