मन तू भजन नहीं यदि करि हौं ।
तो बिन रक्षक भवसागर में,
डूबि डूबि के मरिहौ ।। 1 ।।
बहु दुख भोगि मनुज तन पायो,
फिर चौरासी फिरिहौ ।। 2 ।।
कुछ बन गया पाप यदि तन से,
नरक कुण्ड में परिहौ ।। 3 ।।
यम के दूत वहां दुख देहैं,
बरबस जरिहौ मरिहौ ।। 4 ।।
दारा सुत हित काम न अइहैं,
माय बाप गोहरइहौ ।। 5 ।।
दारूण दुख आगे बहु प्यारे,
भवसागर कस तरिहौ ।। 5 ।।
रक्षक कौन तुम्हारा होगा,
गुरु का पन्थ न धरिहौ ।। 6 ।।
अब तक खोज किया नहिं सतगुरु,
फिर पीछे पछतइहौ ।। 7 ।।
जयगुरुदेव कहें फिर दुख में,
किनकी ओर निहरिहौ ।। 8 ।।
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