मोको कहां ढूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में।। टेक।।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मन्दिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।। 1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपवास में।
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं योग सन्यास में ।। 2।।
नहीं प्राण में नहीं पिंड मंे, न ब्रह्माण्ड आकाश में।
ना मैं भृकुटि भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरत मिल जाऊं, एक पल की हि तलाश में।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में ।। 4।।
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