मौत से डरत रहो दिन रात ।
इक दिन भारी भीड़ पड़ेगी, जम खूंदेंगे धर धर लात ।
वा दिन की तुम याद बिसारी, अब भोगन में रहो भुलात ।
इक दिन काठी बने तुम्हारी, चार कहरवा लादे जात ।
भाई बंधु कुटुंब परिवारा, सो सब पीछे भागे जात ।
आगे मरघट जाय उतारा, तिरिया रोए बिखेरे लाट ।
वहां जमपुर में नर्क निवासा, यहां अग्नि में फुंके जात ।
दोनों दीन बिगाड़े अपने, अब नहीं सुनता सतगुरु बात ।
वा दिन बहु पछतावा होगा, अब तुम करते अपनी घात ।
जवानी गई बृद्धता आई, अब कै दिन का इनका साथ ।
चेत करो मानो यह कहना , गुरु के चरण झुकाओ माथ ।
सतगुरु स्वामी कहत सुनाई , अब तुमको बहु बिधि समझात ।
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