सतगुरु के संग फाग आज, सखि अद्भुत खेली ।
अबीर गुलाल कपूर कुसुम, चन्दन केशन जल धोरी ।। 1 ।।
भरि भरि पिचुकारि गुरु मारहिं,
पांच तीन संग छोड़ी, प्रगट भई पांच सहेली ।। 2 ।।
सो पांचों सखियां निज बहियां
प्रेम सहित गल मेली, शीतल भई तपनि गई सारी,
तन मन की सुधि भूली, धन्य सतगुरु की चेली ।। 3 ।।
पुनि का भयो कहूँ कस सजनी, कहि न सकूं मुख खोली,
छिन मह भयो श्रृंगार विविध विधि,
मैं बन गई नवेली, हार गुरु गल बिच मेली ।। 4 ।।
गुरु ले अंक प्यार मोहि कीन्ही,
अचल सोहाग दियो री, बाहर नैन खुले तो देखा,
गले बिरह की सेली, जरे तन मन की होली ।। 5 ।।
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