तेरा हैं काम केवट का, किनारे नाव ला देना ।
चढ़ा कर मुझ से पापी को, गुरु उस पार कर देना ।। 1 ।।
पुकारूँ मैं किनारे सा, खड़े पर आप नहिं सुनते ।
हुई जो भूल मेरे से, कृपा करके भुला देना ।। 2 ।।
विषय व वासनाओं में, सदा भटका रहा स्वामी ।
न थी कुछ याद निज घर की, पता उस का बता देना ।। 3 ।।
दया सागर पतित पावन, तुम्हें जो लोग कहते हैं ।
रहे कुछ याद इसकी भी, अयश अपना मिटा देना ।। 4 ।।
जो थक कर आ पड़ा द्वारे, शरण देना मुनासिब है ।
अगर चाहो बचालो या, मुझे फिर से डुबा देना ।। 5 ।।
अगर हो सिन्धु तो मैं भी, तुम्हारा एक कतरा हूँ ।
अगर यह दास मिल जाए, कभी विनती ये सुन लेना ।। 6 ।।
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