विनय करुं मैं दोऊ कर जोरे, सतगुरु द्वार तुम्हारे।
बिन घृत दीप आरती साजूं, दोऊ अंखियन मझधारे।।
भाव सहित नित बैठी झरोखे, जोहत प्रियतम प्यारे।
पग ध्वनि सुनुं श्रवण हिय अपने, मन के काज बिसारे।।
जागी सुरत पियत चरनामृत, पियत पियत हुई न्यारे।
घंटा, शंख, मृदंग, सारंगी, बंशी बीन सुना रे।।
जयगुरुदेव आरती करती, गावत जय जय कारे।
विनय करुं मैं दोऊ कर जोरे, सतगुरु द्वार तुम्हारे।।
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