गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु को मानुष जानकर, भक्ति का करें ब्यौहार।
सो प्रानी अति मूढ़ हैं, कैसे जायें भव पार।
गुरु रूप न समझे कोय, देह के बने अभिमानी ।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु को मानुष जानकर, मानुष करो विचार।
सो नर मूढ़ गंवार हैं, भूल रहे संसार।
गुरु रूप न समझे कोय, मोह के फांस फंसानी ।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु को मानुष जानकर, भेड़ की चलते चाल।
वह बन्धन को क्यों तजें, व्यापे माया काल।
गुरु रूप न समझे कोय, पड़े योनि की खानी ।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु नाम आदर्श का, गुरु है मन का इष्ट।
इष्ट आदर्श को न लखे, समझो उसे कनिष्ट।
गुरु रूप न समझे कोय, बात बूझे मन मानी ।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु भाव घट में रहे, अघट सुघट की खान।
जिसे समझ ऐसी नहीं, वह है मूढ़ समान।
गुरु रूप न समझे कोय, नहीं गुरु रूप पिछानी।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
चेला तो चित्त में रहे, गुरु चित्त के आकाश।
अपने में दोनों लखे, वही गुरु का दास।
गुरु रूप न समझे कोय, रहे गुरु पद घट ठानी।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
सुरत शिष्य गुरु शब्द है, शब्द गुरु का रूप।
शब्द गुरु की परख बिन, डूबे भरम के कूप।
गुरु रूप न समझे कोय, नर जन्म गंवानी।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
गुरु ज्ञान का तत्व है, गुरु ज्ञान का सार।
गुरु मत गुरु गम लखे, फिर नहीं भव भय भार।
गुरु रूप न समझे कोय, कमल जैसी गति आनी।
गुरु रूप न समझे कोय, भरम में पड़े अज्ञानी ।
सभी सत्गुरु सन्त ने, कही बात समझाय।
जो नहीं माने वचन को, उरझ उरझ उरझाय।
गुरु रूप न समझे कोय, कौन समझे यह बानी।
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