पिला दो घूँट अमृत, तुम अपने चरण का
हमेँ फूल बना लो तुम, मालिक अपने गुलशन का !
भटका हुआ प्राणी हूँ, न जाने कितने जन्म का !!
जगत लगता है विराना, काल काटने को दौङे !
मुझसे बोझ नहीँ ढूलता, मेरे पीछले करम का !!
भक्ति प्रेम विरह का बरसात कर दो मालिक !
मिटा दो मेरे किस्मत से यह जन्म-मरन का !!
थक चुका हूँ मैँ गुरुवर, अपनी बोझिल जिँदगी से !
पिला दो घूँट अमृत, तुम अपने चरण का !!
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