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केदार और माधव दो भाई हैं - बचपन से दोनों माँ की आँखों के तारे इकट्ठे खेले-पले, बड़े हुए ।
विवाह हुआ, दोनों की बहुएँ आई, बड़ी चम्पा, छोटी श्यामा ।
बहुओं के आने पर परिवार बढ़ा तो सनमुदाद , वैमनस्य, इर्ष्या-द्वेष भी बढ़ चला ।
माँ दोनों के झगड़े देख दुखी थी।
सम्मिलित परिवार टूट गया, मकान दो-दो कोठरियों में बँट गया !
माधव के चार पुत्र हैं, चार पुत्रियाँ ! बड़ा परिवार , खर्च ज्यादा, आमदनी बहुत कम ।
माधव की कमर टूट गई।
चार लड़कियाँ ब्याहने में हालत बिल्कुल खस्ता हो गई ।
चौथी लड़की का अभी गौना नहीं हुआ था कि ऊपर से दो साल के बकाया लगान का वारंट आ गया।
लड़की के गहने सौ रुपये में गिरवी रखने पड़े ।
इधर चम्पा तो देवर की भद्द उड़ाने का मौका ताक रही थी माधव की लड़की के ससुराल में सूचना दे दी-तुम लोग बेसुध बैठे हो, यहाँ गहनों का सफाया हुआ जाता है ।
'दूसरे दिन नाई और दो ब्राह्मण दरवाजे पर बैठ गए ।
माधव बेचारे के गले में फाँसी पड़ गई ।
रुपये कहाँ से आएँ, गहने कैसे छुड़ाए ? आखिर माधव बड़े भाई के पास सहायता की उम्मीद से गया ।
केदार और चम्पा को उसका घर हड़पने का मौका मिल गया ।
चम्पा बोली-“ रुपये बहुत हैं, हमारे पास होते तो कोई बात न थी , किसी महाजन से दिलाने पड़ेंगे, पर कुछ लिखाए-पढ़ाए बिना कौन रुपया देगा ?
और मकान की भी दो कोठरियों पर कौन सौ रुपये देगा ?
आखिर चार बीसी यानी अस्सी रुपये पर स्वयं उसका मकान रहन लिखबवाते हैं ।
नंबरदार, मुखिया और मुख्तार सब हैरान होकर कहते हैं-“ क्या केदार खुद ही रुपया दे रहा है ?
बातचीत तो किसी .साहूकार की थी ।
जब घर में ही रुपया मौजूद है तो इस रेहननामे की आवश्यकता ही क्या थी ?
भाई-भाई में इतना अविश्वास ! राम ! राम ! अरे, क्या माधव अस्सी रुपये को भी महँगा है ?”
माँ ने सुना तो माथा पीट लिया !
उसे वे दिन याद आए जब दोनों भाई उसकी जँघाओं पर पलथी मार बेठते थे, दूध-रोटी खाते थे ! और आज ! हे नारायण ! क्या ऐसे पुत्रों को मेरी ही कोख से जन्म लेना था ? |
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