जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
हम आये बहि देश से (Hum Aaye Bahi Desh Se Kahani)

रूस का बादशाह जार था | उसने अपने देश के कुछ नागरिकों को देश से निकाल दिया | वे बेचारे देश से जाकर समुद्र के किनारे जहाजों पर मजदूरी करने लगे और जीविका चलाने लगे । कुछ दिनों बाद जार को अपने नागरिकों की याद आने लगी. । उसने उनका पता लगवाया कि ये कहोँ पर हैं । जब जार को मालूम हुआ कि उसके नागरिक मजदूरी कर रहे हैं तो उसे दुःख हुआ | उसने सोचा कि खुद जाकर उन लोगों को वापस लाऊंगा |

जार ने भी मजदूरों का भेष बनाया और उन्हीं नागरिकों के बीच जाकर मजदूरी करने लगा | जितने रूसी थे उन सबसे उसने मित्रता की, फिर यह उनको समझाने लगा कि तुम लोग अपने वतन चलो । बादशाह मेरा दोस्त है, मैं उनसे कहकर तुम्हें माफी दिलवां दूंगा, पहले तो रूसियों को विश्वास न आया कि यह साधारण मजदूर बादशाह का दोस्त हो सकता है पर उसकी चाल-ढाल रहन-सहन और बोलने का अंदाज कुछ इस किस्म का था कि मजदूर उस पर अविश्वास भी न कर सकते थे । बादशाह रोज कहता कि तुम लोग चलो हम माफी जरूर ही दिलवा देंगे |

एक दिन मजदूरों ने आपस में विचार किया कि इस व्यक्ति की बातों से ऐसा लगता है कि बादशाह जरूर इसका दोस्त होगा क्योंकि यह गलत बात कोई नहीं करता है | क्यों न हम लोग इसके साथ चलें और अपने वतन में फिर रहने लगेगें | अगर माफी न सिली तो यहां पर जीवन गुजारना ही है | यह तय करके वे बादशाह के पास आये और कहा - मेरे दोस्त चलो हमें हमारा वतन दिखा दो ! अगर बादशाह ने माफी दे दी तो हम वहीं रह जायेंगे |

बादशाह सबको लेकर के चला । जब वह रूस की सीमा पर पहुंचा तो सीमा प्रहरियों ने बादशाह को पहचाना और सलामी दी । ये मजदूर आपस में बात करने लगे कि लगता है कि यह बादशाह का दोस्त है क्योंकि इतना स्वागत किया जा रहा है और कोई रोकता भी नहीं है । जिस शहर से बादशाह गुजरता उसकी स्वागत सलामी बढती ही.जाती । मजदूर यह सब देखते और हैरान होते | राजधानी पहुँचते ही उसका भव्य स्वागत किया गया | वह जाकर अपनी गद्दी पर बैठ गया और मजदूरों से कहा कि मेरे दोस्तों ! मैंने ही तुम्हें देश से निकाल दिया था और मैं तुम सबको माफ करता हूँ । तुम अपने वतन में आराम की...जिन्दगी बसर करो |

इस कहानी को सुनाते हुए स्वामीजी महाराज ने कहा...कि संत भी हम लोगों की तरह इस दुनियां में आते हैं हमारी ही तरह रहते हैं लेकिन उनके बोलने का अन्दाज रहन-सहन हम लोगों से थोड़ा अलग हो जाता है जो उन पर विश्वास कर लेते हैं उन्हें अपने साथ ले जाकर अपने वतन सतलोक में पहुँचा देते हैं । उनकी असली पहचान वहीं पर होती है कि वे कौन हैं ।

बाबा जयगुरूदेव जी महाराज ने एक बार प्रवचन के दौरान कहा था कि साधक जब अन्दर के मण्डलों पर चलता है और हर मण्डल पर गुरू का जलवा देखता है तो उसका विश्वास दृढ़ से दुढ़तर होता चला जाता है । पूरी तरह से कुर्वान वह गुरु पर सत्तलोक में पहुंचकर ही होता है