जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
कर्ण के जन्म की कथा (Karn Ke Janam Ki Katha Mahabharat Kahani)

Story of Karna's birth | Karn Ka Janam Kaise Hua | Mahabharat Kahani | Hindi Stories

यह कहानी ऐसे योद्धा की जिसे लोग दानवीर कर्ण के नाम से जानते हैं। कर्ण पांडवों में सबसे बड़े थे और इस बात का पता सिर्फ माता कुंती को ही था। कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले ही हो गया था। इसलिए, लाेकलाज के डर से कुंती ने कर्ण को छोड़ दिया था, लेकिन कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले कैसे हो गया, इसके पीछे भी एक कहानी है।

बात उस समय की है जब कुंती का विवाह नहीं हुआ था और वह सिर्फ राजकुमारी थीं। उसी दौरान ऋषि दुर्वासा पूरे एक वर्ष के लिए राजकुमारी कुंती के पिता के महल में अतिथि के रूप में ठहरे। कुंती ने एक वर्ष तक उनकी खूब सेवा की। राजकुमारी की सेवा से ऋषि दुर्वासा प्रसन्न हो गए और उन्होंने कुंती को वरदान दिया कि वो किसी भी देवता को बुलाकर उनसे संतान की प्राप्ती कर सकती हैं।

एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न वरदान की परीक्षा की जाए। ऐसा सोचकर उन्होंने सूर्य देव की प्रार्थना करके उन्हें बुला लिया।

सूर्य देव के आने और वरदान के प्रभाव से कुंती विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो गईं। कुछ समय बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जो सूर्य देव के समान ही प्रभावशाली था। साथ ही जन्म के समय से ही उस शिशु के शरीर पर कवच और कुंडल थे।

कुंवारी अवस्था में पुत्र की प्राप्ति के कारण लोकलाज के डर से कुंती ने उसे एक डिब्बे में बंद करके नदी में बहा दिया। बक्सा एक सारथी और उसकी पत्नी को मिला, जिनकी कोई संतान नहीं थी। वो दोनों कर्ण के रूप में पुत्र को पाकर बहुत खुश और उसका लालन पालन करने लगे।

यही सूर्य पुत्र आगे चलकर दानवीर कर्ण कहलाए और कई वर्षों बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांचों पांडवों के सामने वह एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में खड़े रहे।