जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
मीरा के लिए कृष्ण भ्रम नहीं हकीकत थे (Meera Ke Liye Krishn Bhram Nahi Hakikat Th Kahani)

Krishna was not an illusion but a reality for Meera. | Hindi Stories

“इंसान आमतौर पर शरीर, मन और बहुत सारी भावनाओं से बना है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने शरीर, मन और भावनाओं को समर्पित किए बिना किसी चीज के प्रति खुद को समर्पित नहीं कर सकते। विवाह का मतलब यही है कि आप एक इंसान के लिए अपनी हर चीज समर्पित कर दें, अपना शरीर, अपना मन और अपनी भावनाएं। आज भी कई इसाई संप्रदायों में नन बनने की दीक्षा पाने के लिए, लड़कियां पहले जीसस के साथ विवाह करती हैं। कुछ लोगों के लिए यह समर्पण, शरीर, मन और भावनाओं के परे, एक ऐसे धरातल पर पहुंच गया, जो बिलकुल अलग था, जहां यह उनके लिए परम सत्य बन गया था। ऐसे लोगों में से एक मीराबाई थीं, जो कृष्ण को अपना पति मानती थीं।

कृष्ण को लेकर मीरा इतनी दीवानी थीं कि महज आठ साल की उम्र में मन ही मन उन्होंने कृष्ण से विवाह कर लिया। उनके भावों की तीव्रता इतनी गहन थी कि कृष्ण उनके लिए सच्चाई बन गए। यह मीरा के लिए कोई मतिभ्रम नहीं था, यह एक सच्चाई थी कि कृष्ण उनके साथ उठते-बैठते थे, घूमते थे। ऐसे में मीरा के पति को उनके साथ दिक्कत होने लगी, क्योंकि वह हमेशा अपने दिव्य प्रेमी के साथ रहतीं। यहां तक कि मीरा ने अपने दिव्य प्रेमी के साथ संभोग भी किया। उनके पति ने हर संभव कोशिश की, यह सब समझने की, क्योंकि वह मीरा को वाकई प्यार करता था। लेकिन वह नहीं जान सका कि आखिर मीरा के साथ हो क्या रहा है। दरअसल, मीरा जिस स्थिति से गुजर रही थीं और उनके साथ जो भी हो रहा था, वह बहुत वास्तविक लगता था, लेकिन उनके पति को कुछ भी नजर नहीं आता था। वह इतना निराश हो गया कि एक दिन उसने खुद को नीले रंग से पोत लिया, कृष्ण की तरह के पोशाक पहन कर मीरा के पास आया। दुर्भाग्य से उसने गलत तरह के रंग का इस्तेमाल कर लिया, जिसकी वजह से उसे एलर्जी हो गई और शरीर पर चकत्ते निकल आए।

मीरा के इर्द गिर्द के लोग शुरुआत में बड़े चकराए कि आखिर मीरा का क्या करें। बाद में जब कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम अपनी चरम ऊंचाइयों तक पहुंच गया तब लोगों को यह समझ आया कि वे कोई असाधारण औरत हैं। लोग उनका आदर करने लगे। यह देख कर कि वे ऐसी चीजें कर सकती हैं, जो कोई और नहीं कर सकता, उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी होने लगी।

मीरा ने जवाब दिया – ‘वह सामने बैठा है - मेरा स्वामी - नैनचोर, जिसने मेरा दिल चुराया है, और वह समाधि में चली गईं।
पति के मरने के बाद मीरा पर व्यभिचार का आरोप लगाया गया। उन दिनों व्यभिचार के लिए मत्यु दंड दिया जाता था। इसलिए शाही दरबार में उन्हें जहर पीने को दिया गया। उन्होंने कृष्ण को याद किया और जहर पीकर वहां से चल दीं। लोग उनके मरने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह स्वस्थ्य और प्रसन्न बनी रहीं। इस तरह की कई घटनाएं हुईं। दरअसल भक्ति ऐसी चीज है, जो व्यक्ति को खुद से भी खाली कर देती है।
जब मैं भक्ति कहता हूं तो मैं किसी मत या धारणा में विश्वास की बात नहीं कर रहा हूं। मेरा मतलब पूरे भरोसे और आस्था के साथ आगे बढ़ने से है। तो सवाल उठता है, कि मैं भरोसा कैसे करूं? आप इस धरती पर आराम से बैठे हैं, यह भी भरोसा ही है। यह गोल धरती बड़ी तेजी से अपनी धुरी पर और सूरज के चारों ओर घूम रही है। मान लीजिए अचानक यह धरती माता उल्टी दिशा में घूमने का फैसला कर लें, तो हो सकता है कि आप जहां बैठे हैं, वहां से छिटक कर कहीं और चले जाएं। आप नहीं जानते आप कहां पहुंचेंगे।

तो आप आराम से बैठें, मुस्कराएं, दूसरों से बातें करें, इन सबके लिए आपको बहुत ज्यादा भरोसे की जरूरत है। लेकिन यह सब आप अनजाने में और बिना प्रेम-भाव के कर रहे हैं। इस भरोसे को पूरी जागरुकता और प्रेम के साथ करना सीखिए। यही भक्ति है। यह सृष्टि जैसी है, उस पर वैसे ही भरोसा करते हुए अगर आपने जागरुकता और प्रेम के साथ यहां बैठना सीख लिया, तो यही भक्ति है। भक्ति कोई मत या मान्यता नहीं है। भक्ति इस अस्तित्व में होने का सबसे खूबसूरत तरीका है।”


जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के मुखिया थे। मीरा जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीरा से मिलने से मना कर दिया। उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे। मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि ‘वृंदावन में हर कोई औरत है। अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल। आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा कोई और पुरुष भी है।’ इस जबाब से जीव गोसाईं बहुत शर्मिंदा हुए। वह फौरन मीरा से मिलने गए और उन्हें भरपूर सम्मान दिया।

मीरा ने गुरु के बारे में कहा है कि बिना गुरु धारण किए भक्ति नहीं होती। भक्तिपूर्ण इंसान ही प्रभु प्राप्ति का भेद बता सकता है। वही सच्चा गुरु है। स्वयं मीरा के पद से पता चलता है कि उनके गुरु रैदास थे।


नहिं मैं पीहर सासरे, नहिं पियाजी री साथ मीरा ने गोबिन्द मिल्या जी, गुरु मिलिया रैदास