जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
राजा मोरध्वज की कथा (Raja Mordhwaj Ki Katha)

Story of King Mordhwaj | Hindi Stories

दोस्तों यह बात बहुत समय पहले की है एक बार राजा युधिष्ठिर ने यज्ञ करवाया और उसके बाद उन्होंने ब्राम्हणों को इतना दान दिया कि वो अपने साथ उसे नही ले जा सके। इस पर अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे मुरलीधर मेरे भाई युधिष्ठिर जैसा कोई भी दानी इस संसार मे नही है। तब श्री कृष्ण ने कहा कि हे अर्जुन दान की लिस्ट मे तुम्हारे भाई युधिष्ठिर का नाम सबसे नीचे है। तब अर्जुन ने कहा कि अच्छा आप ही बताइये दान की श्रेणी मे सबसे ऊपर नाम किसका है तब श्री कृष्ण ने कहा कि मोरध्वज।


दोस्तों मोरध्वज एक ऐसे राजा थे जो ब्राम्हणों की इच्छानुसार दान देते थे। अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण की बातो पर विश्वास न हुआ तब अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि हमे विश्वास नही है तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि परीक्षा लेकर देख लेते है इस पर अर्जुन मान गये। तब श्री कृष्ण ने यमराज को बुलाया और यमराज को एक बूढा शेर बना दिया और अर्जुन तथा भगवान श्री कृष्ण दोनो ने ब्राम्हण का रूप धारण कर लिया। अब तीनो राजा मोरध्वज के महल मे पहुंच गये और बोले भिक्षामदेही।

तब राजा मोरध्वज ब्राम्हण के पास गये और बोले कि अहो भाग्य हमारे जो आप हमारे यहाँ पधारे कहिये ब्राम्हण देवता हम आपकी क्या सेवा कर सकते है? तब ब्राम्हण रूपी श्री कृष्ण ने मोरध्वज से कहा कि हे राजन हमारा शेर बहुत बूढा हो चुका है इसके दाँत भी नही है इसीलिये सबसे पहले आप हमारे शेर को मांस खिलाइये। तब राजा मोरध्वज ने कहा कि ठीक है ब्राम्हण देवता मै आपके इस शेर को अपने शरीर का मांस काटकर दूँगा जो कि मुलायम है और यह खा भी लेगा। तब ब्राम्हण रूपी श्री कृष्ण ने कहा कि नही मोरध्वज आप बूढे हो चुके है इसीलिये आपका मांस काफी सख्त हो गया है जो कि हमारे शेर के लिये सही नही है।

आपके यहाँ एक पाँच वर्ष का बालक है आपको उसको आरे से बीच से काटकर उसके मुलायम मांस को आपको हमारे शेर को खिलाना होगा। तब राजा मोरध्वज काफी आश्चर्य चकित हो गये और सोच विचार करने लगे दोस्तो क्योंकि मोरध्वज की एक ही संतान थी जिसका नाम ताम्रध्वज था जो कि पाँच वर्ष का बालक था। मोरध्वज के बुढापे वही उनका एकमात्र सहारा था। मोरध्वज सोच ही रहे थे कि उनका छोटा बेटा ताम्रध्वज आ गया और बोला कि हे पिताजी आप इतना क्या सोच रहे हो? आप अपने धर्म की रक्षा के लिये खुशी-खुशी हमारा बलिदान कर दो मै आपके कुछ काम आ सकू यह तो हमारा सौभाग्य होगा।

तब राजा मोरध्वज अपनी रानी के पास गये और सारी कहानी कह सुनाई और बोले कि क्या इस काम मे तुम मेरा साथ दोगी? रानी बोली कि हे महाराज धर्म की रक्षा के लिये मै ऐसे अनेकों बालको को कुर्बान कर सकती हूँ अतः आप धर्म का पालन करें। तब राजा मोरध्वज ने एक आरा मंगवाया और एक तरफ मोरध्वज तथा दूसरी तरफ रानी और बीच मे ताम्रध्वज बैठ गया जब राजा मोरध्वज आरा चलाने ही वाले थे।


तब ताम्रध्वज ने अपने माता पिता को रोक दिया और कान मे डालने के लिये रूई लेकर आया और बोलने लगा कि इस रूई को अपने-अपने कान मे डाल लो ऐसा इसलिये कि जब आप लोग हमे बीच से काटोगे तो दर्द के मारे मेरी चीख निकलेगी उस चीख को सुनकर यदि आप लोगों ने आरा रोक दिया तो आपका धर्म नष्ट हो जायेगा इसीलिये मै कितना भी चीखू कितना भी चिल्लाऊ आपको आरा नही रोकना है।


फिर राजा और रानी दोनो ने अपने-अपने कान मे रूई डाल दी और आरे से ताम्रध्वज को बीच से फाड दिया। खून की फुहार निकलने लगी यह देखकर ताम्रध्वज की माँ की आँखों मे आँसू आ गये तब ब्राम्हण ने कहा कि हे रानी आँख से आँसू नही गिरना चाहिये वरना हमारा शेर मांस को नही खायेंगा। तब शेर ने बच्चे का एक हिस्सा खा लिया तथा दूसरे हिस्से को बाहर भिकवा दिया गया। अब ब्राम्हणों ने कहा कि राजा अब हमें भोजन करवाओ। तब राजा मोरध्वज ने ब्राम्हण को भोजन करवाने लगे जैसे हि ब्राम्हण ने पहले भोजन का निवाला मुह मे डालने चले उसे वापस रख दिया और कहा कि हे राजन तुम हत्यारे हो इसीलिये हम तुम्हारे यहाँ भोजन नही कर सकते है तुमने अपने बेटे की हत्या की है।

तब राजा मोरध्वज कहने लगे कि हे ब्राम्हण देवता आपने ही तो बोला था हमारे बेटे को मारने के लिये। तब ब्राम्हण रूपी श्री कृष्ण ने कहा अब चाहे जो भी हो आप हत्यारे है इसीलिये हम आपके यहाँ भोजन नही कर सकते है इतना कहकर दोनो ब्राम्हण और वह शेर राजदरबार से बाहर चले गये। तब राजा मोरध्वज रोने लगे और कहने लगे कि बेटा तूने मरकर हमारे धर्म की रक्षा की है अब जीवित होकर तुम्हें धर्म की रक्षा करनी है। यदि हमारे दरवार से ब्राम्हण भूखा ही चला जाये तो मेरे इतना दान पुण्य करने का क्या मतलब निकला?

बेटा अब तुम्हें ही हमारे धर्म की रक्षा के लिये आना होगा। अंदर से ताम्रध्वज की आवाज आती है कि पिताजी मुझे आपके धर्म की रक्षा के लिये वापस आना ही पडा। इतने मे जब मोरध्वज पीछे मुडकर देखे तो वहाँ शेर और ब्राम्हण कोई भी नही था वहाँ पर तो भगवान श्री कृष्ण अपने चतुर्भुज रूप मे हाथ मे शंख, चक्र, गधा, पुष्प धारण किये हुये खडे थे। श्री कृष्ण और अर्जुन की आँखों से आँसू गिर रहे थे। श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा कि हे राजा तू सबसे बडा दानी है तेरे जैसा दानी न तो पहले कभी पैदा हुआ था और न ही भविष्य मे कभी पैदा होगा।