जय गुरु देव
समय का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव मुसीबत में बोलने से जान माल की रक्षा होगी ।
परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
ऋषि अगस्त्य के विवाह से जुड़ी कथाएं (Rishi Agastya Ke Vivah Se Judi Katha)

Stories related to the marriage of sage Agastya

एक दिन ऋषि अगस्त्य जंगल में यात्रा कर रहे थे और उनके पितर देवता (पितर) जंगल के पेड़ों पर उलटे लटके हुए थे। जब उन्होंने उनसे पूछा कि इस प्रकार क्यों लटके हुए हैं? ऐसा दुर्भाग्य उनके पास क्यों आया? तो उनके पितर देवता (पितर) ने उत्तर दिया “चूंकि ऋषि अगस्त्य का कोई पुत्र नहीं है, इसी कारण वह इस भयानक कष्ट भोगने के लिए मजबूर हैं।”

यह सुनकर ऋषि अगस्त्य ने उनसे वादा किया कि वह जल्द ही विवाह कर लेंगे। उन्होंने धरती पर मौजूद उन सभी चीजों को इकट्ठा किया जो एक अच्छे इंसान में पाई जाती हैं और एक कन्या का निर्माण किया। उस समय विदर्भ के राजा संतान प्राप्त करने के लिए बहुत तपस्या एवं जप-तप कर रहे थे। ऋषि अगस्त्य उनके पास पहुंचे और अपने द्वारा बनाई गई उस कन्या को राजा को आशीर्वाद स्वरुप दे दी। उस कन्या का नाम लोपमुद्रा रखा गया, साथ ही उस कन्या का लालन-पालन राजसी वैभव और ऐश्वर्य के बीच किया गया। जब कन्या विवाह योग्य आयु की हुई, तो ऋषि अगस्त्य वहां पहुंचे और उन्होंने राजा विदर्भ से उस कन्या से विवाह करने की इच्छा जताई। यद्यपि राजा विदर्भ ऋषि से बहुत डरते थे, परंतु फिर भी उन्होंने ऋषि को संकेत दिया कि वह अपनी पुत्री का विवाह उनसे नहीं करना चाहते। परन्तु इधर लोपमुद्रा ने अपने पिता से कहा कि वह ऋषि अगस्त्य से ही विवाह करना चाहती हैं।

पश्चात राजा ने लोपमुद्रा का विवाह ऋषि अगस्त्य से करवा दिया। चूंकि ऋषि अगस्त्य पहाड़ों, जंगलों और कटीले रास्तों की यात्रा करते थे और वे नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी इस कष्ट को सहन करे, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को एक सूक्ष्म रूप देकर, उन्हें एक घड़े में रख लिया और वे जहां भी जाते अपने साथ उस घड़े को ले जाते थे। भगवान शिव की इच्छा के कारण ऋषि अगस्त ने दक्षिण की यात्रा की और वहीं बस गए। हालांकि यह यात्रा बहुत ही दुर्गंम थी, परंतु उन्होंने भगवान शिव का आदेश मानकर इसे पूरा किया। भगवान शिव ने ऋषि अगस्त्य को वरदान दिया था कि उनके घड़े में हमेशा पानी भरा रहेगा।

उस समय दक्षिण भारत का यह क्षेत्र बेहद शुष्क था, जहां कभी-कभी पानी बरसता था। एक बार जब ऋषि अगस्त्य स्नान करने गए, तो भगवान गणेश ने एक कौए का रूप लेकर ऋषि अगस्त्य के घड़े को पलट दिया। घड़े के अंदर ऋषि की पत्नी लोपमुद्रा थीं, जो घड़े के पलटने के कारण बारहमासी पानी के साथ शक्तिशाली कावेरी नदी में बदल गईं। यह नदी बारहमासी है तथा इस नदी का पानी भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण कभी नहीं सूख सकता। इनकी पत्नी लोप मुद्रा का नाम “कावेरी” इसलिए पड़ा क्योंकि उस घड़े का जल एक कौवे द्वारा फैलाया गया, यहां कावेरी का शाब्दिक अर्थ “का” अर्थात “कौवा” और “विरी” अर्थात “फैलाना” है।

दक्षिण भारत में ऋषि अगस्त्य के विवाह से जुड़ी एक अन्य कहानी भी प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि कूर्ग की ब्रह्म गिरि पर्वत श्रृंखला के पास कावेरा नामक एक शिकारी राजा निवास करता था। जीवन में उसका एकमात्र उद्देश्य अपने देश का भला करना था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न के लिए बहुत तपस्या की। अंत में भगवान शिव उससे प्रसन्न हुए और उसे एक पुत्री का वरदान दिया, जिसका नाम कावेरी रखा गया। इसके साथ ही उन्होंने उससे यह भी कहा कि इस पुत्री के माध्यम से उसकी हर इच्छा पूरी होगी। कुछ समय पश्चात ऋषि अगस्त्य का ब्रम्हगिरी पर्वतों पर भ्रमण का संजोग बना। कावेरा ने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि अगस्त्य से करने की इच्छा जताई।

ऋषि अगस्त्य और कावेरी ने एक सुखी दांपत्य जीवन का सुख भोगा। लेकिन उस समय सुरपद्मा नामक असुर के अत्याचारी शासन के कारण संपूर्ण दक्षिण भारत एक भयानक अकाल की चपेट में था। एक दिन जब ऋषि अगस्त्य स्नान करने जा रहे थे, उस समय कावेरी की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। इसलिए उन्होंने कावेरी को पानी में बदल दिया और उनको अपने पवित्र घड़े में रख दिया। यह समय की बात थी कि भगवान गणेश ने एक कौवे का रूप धारण किया और घड़े को उलट दिया। घड़े से जब पानी निकला तो उस जल ने उसने एक धारा का रूप ले लिया और यह देखते ही देखते कावेरी नदी में परिवर्तित हों गईं, यह एक बहुत विशाल बारहमासी नदी बन गई।