श्रद्धा के भाव बनाओ, सतगुरु मेरी सुरत जगाओ ।
श्रद्धा मेरी बढ़े दिन रैना, दर्शन पाए बिन नहीं चैना ।
अब तो दरश दिखाओ । सतगुरु..सुरत मेरी सतदेश विराजे,
ऐसी लगन लगाओ। सतगुरु..
मैं तो हूँ सतदेश की वासी, आवागमन मिटाओ। सतगुरु..
ना भावे या माया नगरी,इससे मुझे बचाओ। सतगुरु..
ना जानूँ मैं रीति प्रेम की, अमृत रस बरसाओ। सतगुरु..
सुरत सुहागन चली पिया घर, माँग मेरी भर देओ। सतगुरु..
उड़ जाऊँ या काल देश से, ऐसे पंख लगाओ। सतगुरु..
माटी से सोना कर दिया, अब हीरा कर देओ। सतगुरु..
सुरत मेरी होवे असमानी, ऐसी राह दिखाओ। सतगुरु..
जयगुरुदेव दया के सागर, घर अपने ले जाओ । सतगुरु..
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