उठ जाग मुसाफिर भोर भई, क्यों मोह निशा में सोवत है।
जो सोवत है वह खोवत है, जो जागत है वो पावत है।
तू नींद से अंखियां खोल जरा, गुरुदेव से अपने नेह लगा।
यह प्रीत करन की रीति नहीं, गुरु जागत हैं तू सोवत है।
अनमोल मिला यह तन, गिन कर स्वांसों की पूंजी पाया।
इसमें कुछ कार्य करो अपना तू व्यर्थ समय क्यों खोवत है।
उत देख समाधि गुरु की टूटी, भक्तों ने दर्शन पायां।
तू आलस में क्यों पड़ा हुआ अपने हित की नहीं सोचत है।
बालापन तरुण अवस्थायंे, तू गफलत में बर्बाद किया।
सुध आज नहीं यदि करता है, तो नाव तुम्हारी डूबत है।
गुरु जयगुरुदेव जगाय रहे प्यारे उठ कार्य करो अपना।
यदि आज न काज किया अपना, फिर कर्मभार सिर ढोवत है।
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